Happy Birthday, Munshi Premchand a.k.a. Nawab-rai!
सबसे बड़े लेखक, टीचर के तौर पर कभी 18 रुपए थी तनख्वाह। बीएचयू के भारत कला भवन में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद से जुड़ी कई सुनहरी यादें सुरक्षित हैं। यहां उनके कालजयी उपन्यास ‘गोदान’ और कहानी ‘कश्मीर का सेब’ की हस्तलिखित प्रतियां संरक्षित की गई हैं। इन प्रतियों को जर्मनी से मंगाए गए खास तरह के केमिकल फ्री कागज में लपेट कर रखा गया है।
नीले रंग की स्याही से हिंदी के छोटे अक्षरों में लिखा ‘गोदान’ पुरातत्व की दृष्टि से भी बेशकीमती धरोहर है।
इनके अतिरिक्त भारत कला भवन में प्रेमचंद का काले फ्रेम में गोल शीशे वाला चश्मा तथा खादी का कुर्ता व कोट भी रखा हुआ है।
इनकी रचनाएं जो हो गईं पूरी दुनिया में मशहूर उसमे से अपनी रचना ‘गबन’ के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, ‘निर्मला’ से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और ‘बूढी काकी’ के जरिए ‘समाज की निर्ममता’ को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया, उसकी तुलना नही है.
इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है. बाकी धनिया, हीरा और मोती से तो आप लोग परिचित होंगे ही।

भारत कला भवन में प्रेमचंद का खादी का कुर्ता।
हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का कद इतना ऊंचा है कि आप सोच भी नहीं सकते। उनका लेखन एक ऐसी विरासत है, जिसकी अगर बात न की जाए तो हिंदी के विकास को अधूरा ही माना जाएगा. मुंशी प्रेमचंद शुरू में नवाब राय के नाम से लिखते थे। धनपत राय श्रीवास्तव वाले मूल नाम के एक संवेदनशील लेखक, जागरूक नागरिक, निपुण वक्ता और बहुत ही सुलझे हुए संपादक.. ऐसे थे मुंशी प्रेमचंद!
मैंने भी एक हिंदी कविता में 2 लाइन्स कुछ इस तरह से कही हैं:–
तुम भी इस लेखन की दुनिया का व्यवसाय न हो जाना,
सुनो, मैं चाहता हूँ तुम सब लेखकों में नवाब राय हो जाना..–Phantom
आज उनकी जयंती पर उन्हें जन्मदिन मुबारक। होरी, धनिया, हीरा जैसे कई किरदारों के मायनों से आज राय साहिब सभी में जिन्दा हैं। आशा करता हूँ ऐसे ही आने वाली पीढ़ी को इनकी किताबें पढ़ने को मिले।